ब्रिटेन की वैक्सीन टास्कफोर्स के चीफ डॉक्टर केट बिंघम ने हाल ही में एक चेतावनी जारी की है, जिसमें उन्होंने कहा है कि एक नई महामारी जिसे वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) डिसीज X के नाम से जानता है, आने वाली है और यह 5 करोड़ लोगों की जान को खतरे में डाल सकती है। इस महामारी कोविड-19 से 7 गुना ज्यादा खतरनाक हो सकती है और इसका फैलाव तेजी से हो सकता है।
म्यूटेशन का मतलब होता है कि किसी जीव के जेनेटिक मटेरियल में बदलाव हो रहा है। वायरस खुद को लाखों कॉपी बनाता है और इंसानों या जानवरों से फैल सकता है, और हर कॉपी में यह अलग-अलग होता है, जिससे बीमारी का फैलाव बढ़ता है। इसका मतलब है कि वायरस तेजी से म्यूटेट हो रहे हैं।
इसके पहले ही ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने डिसीज X के खिलाफ वैक्सीन डेवलप करने का काम शुरू किया है। उन्होंने 25 प्रकार के वायरसों पर अध्ययन किया है, और इसमें विशेष ध्यान जानवरों से इंसानों में फैल सकने वाले वायरस पर दिया गया है। क्योंकि क्लाइमेट चेंज के कारण कई जानवर और जीव-जंतु रिहायशी इलाकों में आ रहे हैं, इसलिए वो इंसानों के बीच बीमारियों के फैलाव का संभावना है।
क्लाइमेट चेंज के चलते हमने अपने विकास के नाम पर जंगलों को काटकर इंडस्ट्रीज और घरों की निर्माण की है, जिससे हमारा संपर्क जीवों, मच्छरों, बैक्टीरिया, और फंगस के साथ बढ़ गया है। ये सभी जीव-जंतु खुद को क्लाइमेट कंडिशन्स के अनुकूल बना रहे हैं और अपने नए आसपासी वातावरण में रह रहे हैं, जिससे बीमारियों का फैलाव हो रहा है।
कंजर्वेशन इंटरनेशनल एनजीओ के फिजिशियन नील वोरा ने कहा है कि यह कोई आने वाले समय की प्रॉब्लम नहीं है, बल्कि क्लाइमेट चेंज अभी हो रहा है और इसका व्यक्तियों पर बुरा असर हो रहा है। उन्होंने इससे जुड़े कई रिसर्चेस का उल्लेख किया है, जिनसे पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन से बीमारियां फैल रही हैं।
उदाहरण के रूप में, साइंस न्यूज के मुताबिक, पोसम्स ऑस्ट्रेलिया में पाए जाने वाले नेवले की तरह दिखने वाले जानवर बुरुली अल्सर नामक बीमारी का फैलाव बढ़ रहा है।
इससे समझा जा सकता है कि पोसम्स ऑस्ट्रेलिया के तापमान में तो रह सकते हैं, लेकिन अगर वहां के तापमान में बदलाव होता है तो यह जीव अनुकूल परिस्थितियों की तलाश में किसी और देश जा सकता है। ऐसी स्थिति में पोसम्स से फैलने वाली बुरुली अल्सर बीमारी ऑस्ट्रेलिया के साथ न्यूजीलैंड में भी फैल सकती है।
इसके अलावा, इंसान अपने जीवन के लिए कई जीवों पर निर्भर रहते हैं, और उन्हें अपना सर्वाइवल में मदद मिलती है। इससे होता है कि इंसान इन जीवों के साथ सीधे संपर्क में आते हैं, जिससे वे उनके द्वारा बदलते जेनेटिक बैक्टीरिया या बीमारियों के डायरेक्ट कॉन्टैक्ट में आ सकते हैं।